“महंगे सोने-चांदी के दौर में कैरेट आधारित हॉलमार्किंग का विस्तार, लेकिन 60% और 70% शुद्धता पर विवाद गहराया”
विवेक झा, भोपाल। देश में लगातार बढ़ती सोने और चांदी की कीमतों ने आम उपभोक्ताओं के बजट को तो प्रभावित किया ही है, साथ ही ज्वेलरी इंडस्ट्री को भी अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। इसी क्रम में गोल्ड ज्वेलरी इंडस्ट्री की मांग पर ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) ने 14 कैरेट सोने को हॉलमार्क की अनुमति दे दी है। साथ ही अब 9 कैरेट गोल्ड ज्वेलरी को भी हॉलमार्क कैटेगरी में शामिल करने पर गंभीरता से विचार हो रहा है।
सर्राफा कारोबारी संजीव गर्ग गांधी ने बताया कि सोने की बढ़ती कीमतों के कारण उपभोक्ता अब हाई कैरेट गोल्ड जैसे 22K या 18K से हटकर कम कैरेट वाले विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे में 14K और 9K को हॉलमार्क कैटेगरी में शामिल करना इंडस्ट्री के लिए व्यावहारिक कदम साबित हो सकता है।
लेकिन मामला केवल यहीं नहीं थमता। अब इसी तरह की हॉलमार्किंग बहस चांदी की ज्वेलरी पर भी पहुंच गई है, जहां 60% और 70% शुद्धता वाली चांदी को हॉलमार्क की मान्यता देने के प्रस्ताव पर उद्योग में विवाद खड़ा हो गया है।
विरोध क्यों हो रहा है?
दरअसल, चांदी की ज्वेलरी भारत में मुख्य रूप से मिडिल और लोअर क्लास उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाती है। खासकर ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में 60-70% तक शुद्धता वाली चांदी की ज्वेलरी ज्यादा लोकप्रिय है, क्योंकि यह बजट में आती है और पारंपरिक मांग भी इसी से जुड़ी है।
लेकिन BIS की हॉलमार्किंग कैटेगिरी में अब तक सिर्फ 80%, 92.5% (स्टर्लिंग), 97% और 99% शुद्धता की चांदी को ही स्वीकृति मिली है। अब यदि 60-70% को भी हॉलमार्क की मान्यता मिल जाती है, तो विशेषज्ञों का मानना है कि इससे उपभोक्ता भ्रमित होंगे और शुद्धता के मानकों पर संदेह पैदा होगा।
स्टर्लिंग सिल्वर (92.5%) की ज्वेलरी अभी देश में कुल सिल्वर ज्वेलरी बिक्री का केवल 10-20% हिस्सा है, जबकि 80% से कम शुद्धता वाली ज्वेलरी ही सबसे ज्यादा बिकती है, खासकर आम जनता के बीच।
इंडस्ट्री का पक्ष
सिल्वर ज्वेलरी उद्योग का कहना है कि वे 80%, 92.5%, 97% और 99% वाली हॉलमार्किंग को समर्थन देते हैं, लेकिन 60% और 70% पर हॉलमार्किंग देने से पूरी प्रणाली पर सवाल खड़े हो सकते हैं। इससे उपभोक्ता भ्रमित होंगे कि आखिर कौन-सी ज्वेलरी शुद्ध है और कौन-सी सिर्फ सस्ती।
दूसरी तरफ, चांदी से जुड़े उच्च वर्ग के उपभोक्ता अधिकतर ज्वेलरी नहीं, बल्कि सिक्के, मूर्तियां, आर्टिकल्स, बर्तन या सजावटी सामान खरीदते हैं, जिनमें आमतौर पर 92.5% या उससे अधिक शुद्धता होती है। ऐसे में हॉलमार्क की वैल्यू इन प्रोडक्ट्स के लिए ज्यादा मायने रखती है।
सरकार यदि हॉलमार्किंग को अधिक व्यावहारिक और ग्राहकों के हित में बनाना चाहती है तो उसे जमीनी सच्चाई को समझते हुए कदम उठाना होगा। कैरेट या शुद्धता का विस्तार करते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि गुणवत्ता का मानक न गिरे और उपभोक्ताओं का भरोसा भी बना रहे।