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“AIS और TIS के माध्यम से टैक्स पारदर्शिता की दिशा में बढ़ते कदम, टैक्स ला बार एसोसिएशन की कार्यशाला में चार्टर्ड अकाउंटेंट ने दी अहम जानकारी”

विवेक झा, भोपाल। टैक्स ला बार एसोसिएशन ने अपने सदस्यों को आयकर विवरणी (Income Tax Return) भरने की प्रक्रिया को अधिक सटीक, पारदर्शी और विभागीय मानकों के अनुरूप बनाने के उद्देश्य से एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का मुख्य विषय था—आयकर विभाग द्वारा प्रदान किए जा रहे वार्षिक सूचना लेखा-जोखा (Annual Information …
 

विवेक झा, भोपाल। टैक्स ला बार एसोसिएशन ने अपने सदस्यों को आयकर विवरणी (Income Tax Return) भरने की प्रक्रिया को अधिक सटीक, पारदर्शी और विभागीय मानकों के अनुरूप बनाने के उद्देश्य से एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का मुख्य विषय था—आयकर विभाग द्वारा प्रदान किए जा रहे वार्षिक सूचना लेखा-जोखा (Annual Information Statement – AIS) एवं लेनदेन सूचना लेखा-जोखा (Taxpayer Information Summary – TIS) का विवरणी में सही उपयोग।

इस अवसर पर युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट आकाश सक्सेना ने सदस्यों को संबोधित करते हुए इन दोनों दस्तावेज़ों की महत्ता, उपयोगिता और उनके सावधानीपूर्वक विश्लेषण की आवश्यकता पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि आयकर विभाग अब पहले से कहीं अधिक तकनीकी रूप से सक्षम हो गया है और उसके पास करदाताओं की लेनदेन संबंधी जानकारी कई स्रोतों से उपलब्ध होती है।

“AIS और TIS के माध्यम से टैक्स पारदर्शिता की दिशा में बढ़ते कदम, टैक्स ला बार एसोसिएशन की कार्यशाला में चार्टर्ड अकाउंटेंट ने दी अहम जानकारी”

आकाश सक्सेना ने कहा, “AIS और TIS जैसे दस्तावेज़ों की अनदेखी करना करदाता के लिए भारी पड़ सकता है। कई बार एक ही लेनदेन की जानकारी दो अलग-अलग स्रोतों से आ जाती है, जिससे विवरणी भरते समय अगर सावधानी न बरती जाए तो कर की देनदारी अनावश्यक रूप से बढ़ सकती है।”

उन्होंने बताया कि बैंक खातों से निर्धारित सीमा से अधिक नगद निकासी या जमा पर आयकर विभाग द्वारा नोटिस भेजे जा सकते हैं। इसलिए करदाताओं को अपने बैंकिंग व्यवहार में भी पारदर्शिता और संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

कार्यशाला में एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा हुई कि यदि किसी भारतीय करदाता को किसी विदेशी कंपनी से लाभांश (डिविडेंड) प्राप्त होता है, तो उस पर भारत में आयकर देना अनिवार्य है। इसके अलावा, AIS रिपोर्ट में कई बार शेयरों की खरीदी का मूल्य “शून्य” अंकित हो जाता है, जिसे करदाता को स्वयं सत्यापित कर ठीक करना चाहिए, अन्यथा भविष्य में पूंजीगत लाभ (Capital Gain) पर भारी टैक्स वसूली की आशंका रहती है।

आकाश सक्सेना ने चेतावनी दी कि विभाग अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के जरिए प्राप्त आंकड़ों का मिलान करता है और संदेहास्पद मामलों में करदाताओं को सूचना पत्र जारी करता है। अगर करदाता ने जानबूझकर कोई आय या लेनदेन छुपाया है और वह पकड़ में आता है, तो उस पर कई गुना दंडात्मक टैक्स देना पड़ सकता है।

कार्यशाला के अंत में संस्था के अध्यक्ष मृदुल आर्य ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह की जानकारी आधारित कार्यशालाएं न केवल अधिवक्ताओं और कर सलाहकारों की दक्षता को बढ़ाती हैं, बल्कि करदाताओं के लिए भी जिम्मेदार कर आचरण सुनिश्चित करने में सहायक होती हैं।

इस अवसर पर वरिष्ठ सदस्य भूपेश खुरपिया, राजेश्वर दयाल, गोविंद वसंता, हर्ष गुप्ता, अनिल जैन समेत कई प्रतिष्ठित अधिवक्ता उपस्थित थे।

कार्यशाला ने यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया कि अब आय छुपाने या जानकारी को नजरअंदाज करने का दौर समाप्त हो चुका है और पारदर्शिता तथा ईमानदारी ही टैक्स प्लानिंग का सबसे मजबूत आधार बन चुकी है।