सुप्रीम कोर्ट ने श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश पर लगाई अस्थायी रोक

मथुरा सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश, 2025 पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिसके तहत सरकार मथुरा-वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन अपने हाथों में ले रही थी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि इस मामले को अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया …
 

मथुरा 
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश, 2025 पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिसके तहत सरकार मथुरा-वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन अपने हाथों में ले रही थी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि इस मामले को अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जाएगा ताकि अध्यादेश की वैधता पर निर्णय लिया जा सके।

निगरानी के लिए समिति का गठन
अध्यादेश की कानूनी वैधता तय होने तक, उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति मंदिर के मामलों की निगरानी करेगी। इस समिति में जिला कलेक्टर, राज्य सरकार के अधिकारी और हरिदासी संप्रदाय के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह निर्णय इसलिए लिया गया ताकि मंदिर का सुचारू संचालन सुनिश्चित हो सके और किसी भी पक्ष के अधिकारों का हनन न हो।
 
गलियारा विकास और फंड का इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 15 मई के उस फैसले को भी वापस ले लिया है, जिसमें राज्य सरकार को गलियारा विकास परियोजना के लिए मंदिर के फंड का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। पिछली सुनवाई के दौरान, पीठ ने राज्य सरकार द्वारा मंदिर के फंड के उपयोग की अनुमति मांगने के "गुप्त तरीके" पर कड़ी आपत्ति जताई थी।याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलीलें : इस मामले में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें यूपी सरकार के अध्यादेश को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि

यह अध्यादेश सरकार का धार्मिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप है, जिससे मंदिर प्रबंधन की स्वायत्तता प्रभावित हो रही है।

सरकार ने मंदिर प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने का कोई ठोस और मजबूत कारण नहीं बताया है।

वकील संकल्प गोस्वामी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह अध्यादेश हरिदासी/सखी सम्प्रदाय के अपने धार्मिक मामलों को खुद संभालने के अधिकार का उल्लंघन करता है।

याचिकाकर्ताओं का यह भी मानना है कि इस अध्यादेश से धार्मिक रीतियां और परंपराएं बदलने की कोशिश की जा रही है, जो देवता को नाराज कर सकता है और पूरे सम्प्रदाय के अस्तित्व पर खतरा पैदा कर सकता है। यह मंदिर 1939 से पारंपरिक रूप से निजी प्रबंधन के अधीन है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विस्तृत आदेश जल्द ही अपलोड करेगा।