IBC के नाम पर लुट गई बैंकिंग: लाखों करोड़ के कर्ज माफ, आम आदमी के भरोसे को धोखा

विवेक झा, भोपाल। देश की बैंकिंग व्यवस्था आज एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ी हुई है, जहाँ सरकारी नीतियाँ और कॉरपोरेट गठजोड़ के चलते बैंकों का अस्तित्व ही संकट में है। IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) जिसे कर्ज वसूली का क्रांतिकारी कानून बताया गया था, वह अब कॉरपोरेट माफी योजना बनकर उभरा है। बैंकों ने …
 

विवेक झा, भोपाल। देश की बैंकिंग व्यवस्था आज एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ी हुई है, जहाँ सरकारी नीतियाँ और कॉरपोरेट गठजोड़ के चलते बैंकों का अस्तित्व ही संकट में है। IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) जिसे कर्ज वसूली का क्रांतिकारी कानून बताया गया था, वह अब कॉरपोरेट माफी योजना बनकर उभरा है। बैंकों ने वर्षों से जनता की जो पूंजी जमा की थी, वह अब औने-पौने दामों में बट्टे खाते में डालकर कॉरपोरेट घरानों के हवाले कर दी गई। इस पूरी प्रक्रिया में न केवल बैंक कमजोर हुए बल्कि आम आदमी का सिस्टम पर से विश्वास भी डगमगाया।

IBC: कानून से ज्यादा सुविधा योजना

2016 में सरकार ने IBC को एक सख्त ऋण समाधान कानून के रूप में पेश किया था, लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा उन्हीं कॉरपोरेट कंपनियों को मिला जिन्होंने जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाया। बैंकों से भारी कर्ज लेने के बाद ये कंपनियाँ NPA घोषित हुईं, और फिर उन्हें IBC के तहत सिर्फ 10-20% भुगतान कर बच निकलने का मौका मिल गया।

उदाहरण के लिए:

  • वीडियोकॉन ने ₹46,000 करोड़ का कर्ज लिया और सिर्फ ₹2,900 करोड़ में निपटान हुआ। यानी 94% हेयरकट

  • लैंको इन्फ्रा को ₹47,000 करोड़ का कर्ज मिला और वह सिर्फ ₹5,300 करोड़ में निपटा, जिससे बैंकों को 88% नुकसान हुआ।

  • अलोक इंडस्ट्रीज के मामले में ₹30,000 करोड़ का कर्ज सिर्फ ₹5,000 करोड़ में माफ हो गया – 83% घाटा

  • ज्योति स्ट्रक्चर्स, एएमटेक, डीएचएफएल, भूषण पावर जैसी कंपनियों में भी हेयरकट का यही पैटर्न देखने को मिला।

बैंकों की मेहनत लुटी, मुनाफा माफ

अगर बैंकों के सकल परिचालन लाभ (operating profit) और NPA की वसूली के लिए किए गए प्रावधानों की तुलना करें, तो सच्चाई और भी चौंकाने वाली है।
उदाहरण के लिए:

  • 2017-18 में बैंकों ने ₹1.55 लाख करोड़ का लाभ कमाया, लेकिन एनपीए प्रावधानों में ₹2.70 लाख करोड़ डुबो दिए।

  • 2015-16 से 2019-20 के बीच लगातार बैंकों को भारी घाटा हुआ।

  • वर्ष 2024-25 में भी ₹3.13 लाख करोड़ का लाभ कमाने के बावजूद ₹1.26 लाख करोड़ एनपीए प्रावधानों में चला गया।

इसका सीधा असर बैंकिंग सेवाओं पर पड़ा। नई शाखाएं खुलनी बंद हो गईं, छोटे ऋणों की मंजूरी में देरी होने लगी और बैंकिंग स्टाफ पर वर्कलोड कई गुना बढ़ गया।

अदाणी समूह के पक्ष में ‘सिस्टम’

IBC के जरिए जिन कंपनियों को औने-पौने दामों में खरीदा गया, उनमें से ज्यादातर अंत में अदाणी समूह के पास पहुँचीं।

  • एचडीआईएल, रेडियस एस्टेट, नेशनल रेयॉन, दीघी पोर्ट, कोरबा वेस्ट पावर, कराईकल पोर्ट, और लैंको अमरकंटक पावर जैसी दर्जनों दिवालिया कंपनियाँ अब अदाणी की हो चुकी हैं।

  • कुल ₹61,832 करोड़ के कर्ज वाली कंपनियाँ सिर्फ ₹15,977 करोड़ में अदाणी समूह को सौंप दी गईं – यानी औसतन 74% नुकसान बैंकों को झेलना पड़ा।

यह केवल संयोग नहीं बल्कि गहरे कॉरपोरेट-सत्ता गठजोड़ की कहानी है, जहाँ नीति बनती है तो चंद घरानों को फायदा पहुँचाने के लिए।

कमाल की चाल एनपीए कंपनियां कैसे एक-एक कर अदाणी के पास पहुँचीं?

दिवालिया कंपनी खरीदार स्वीकृत दावा राशि (करोड़) खरीदा गया मूल्य बैंकों को हुआ घाटा
एचडीआईएल (BKC प्रोजेक्ट) अदाणी प्रॉपर्टीज 7,795 285 96%
रेडियस एस्टेट्स एंड डेवलपर्स अदाणी गुडहोम्स 1,700 76 96%
नेशनल रेयॉन कॉर्पोरेशन अदाणी प्रॉपर्टीज 1,175 160 86%
एस्सार पावर (एमपी लिमिटेड) अदाणी पावर 12,013 2,500 79%
दीघी पोर्ट लिमिटेड अदाणी पोर्ट 3,075 705 77%
लैंको अमरकंटक पावर अदाणी पावर 15,190 4,101 73%
कोस्टल एनर्जेन लिमिटेड अदाणी पावर 12,300 3,500 72%
आदित्य एस्टेट्स अदाणी प्रॉपर्टीज 593 265 55%
कराईकल पोर्ट अदाणी पोर्ट 2,959 1,485 43%
कोरबा वेस्ट पावर कंपनी अदाणी पावर 5,032 2,900 42%

कुल कर्ज राशि: ₹61,832 करोड़
अदाणी समूह ने खरीदा: ₹15,977 करोड़
बैंकों को औसतन नुकसान: 74%

 

सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की साजिश?

जिस सिस्टम ने जनता की पूंजी को लुटाया, अब वही कह रहा है कि सार्वजनिक बैंकों को निजी हाथों में सौंप देना चाहिए। यह विडंबना नहीं बल्कि सुनियोजित रणनीति है। पहले बैंकों को कमजोर किया गया, घाटे में दिखाया गया, फिर कहा जा रहा है कि निजीकरण ही इसका समाधान है।

वास्तव में यह देश की आर्थिक संप्रभुता के साथ खुला मज़ाक है। जिस बैंकिंग सिस्टम ने गाँव-गाँव में शाखाएं खोलीं, किसानों, महिलाओं, बेरोजगारों और छोटे कारोबारियों तक ऋण पहुँचाया – उसे कॉरपोरेट मुनाफे के लिए नीलाम किया जा रहा है।

जनता के पैसों से चांदी कौन काट रहा है?

बैंक जनता की कमाई के संरक्षक हैं। लेकिन आज वही धन निजी कंपनियों के घाटे को पूरा करने में लग रहा है। स्कूल, अस्पताल, सड़कों के लिए जो पैसा होना चाहिए था, वह रिलायंस, अदाणी, टाटा और पीरामल जैसी कंपनियों की तिजोरी में जा रहा है।

यह ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ (साठगांठ आधारित पूंजीवाद) का सबसे क्रूर रूप है – जहाँ नीतियाँ सिर्फ चुनिंदा लोगों के फायदे के लिए बनाई जाती हैं।

ऑल इंडिया बैंक एम्‍पलाईज एसोसिएशन के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने फर्स्‍ट खबर को बताया कि IBC कानून का दुरुपयोग करके बैंकों को लगभग ₹4 लाख करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। यह जनता की पूंजी की सबसे बड़ी डकैती है जो सरकार की आंखों के सामने हुई। बैंकों की यह दुर्दशा किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से नहीं, बल्कि सरकार और पूंजीपतियों की मिलीभगत का नतीजा है। यदि समय रहते आम लोग जागरूक नहीं हुए, तो कल को ये बैंक केवल नाम के रह जाएंगे – न जनहित में, न राष्ट्रहित में।